विश्व की प्रतिष्ठित स्वास्थ्य पत्रिका दि लांसेट जर्नल में प्रकाशित शोध का यह निष्कर्ष चौंकाने वाला है कि वर्ष 2010 से 2017 के बीच भारत में शराब की खपत 38 फीसदी बढ़ी है। पूरी दुनिया के 189 देशों में हुआ सर्वेक्षण चेता रहा है कि यदि?शराब की खपत इसी गति से बढ़ती रही तो वर्ष ?2030 तक दुनिया के आधे बालिग शराब का सेवन करने लगेंगे। पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार साल 1990 से लेकर 2017 के बीच 189 देशों में शराब की खपत 70 फीसदी बढ़ी है जो बहुत चौंकाने वाला आंकड़ा है। जो बताता है कि विकास के तमाम दावे खोखले साबित होंगे, यदि शराब व नशीले पदार्थों का सेवन इसी गति से बढ़ता गया। जाहिर है कि अल्कोहल से होने वाले दुष्परिणामों से निपटने के लिये किये प्रयास व लक्ष्य पूरे नहीं हो रहे हैं। यह पूरी दुनिया की नाकामी है क्योंकि इस लत का बुरा प्रभाव हमारे नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। शोध बताते हैं कि शराब के सेवन से दो से अधिक गैर संक्रमित रोग होते हैं। कहने को देश के संविधान में वर्णित नीतिनिर्देशक तत्व सरकारों से मद्यनिषेध के अनुपालन और नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य पर बल देते हैं। मगर करों के लालच में सरकारें शराब कारोबार को अपनी आय का मुख्य जरिया बना रही हैं। जिन राज्यों में नशाबंदी के प्रयास किये भी गये हैं, वहां एक ऐसा शराब माफिया तंत्र विकसित हो गया, जो सत्ता की नीतियों को प्रभावित करने लगा। लोगों को पहले के मुकाबले शराब महंगी मिलने लगी, मगर इसके फायदे में कुछ और समूह शामिल हो गये। नशा कारोबार में सत्ताधीशों की मिलीभगत किसी से छिपी नहीं है। हाल के वर्षों में बिहार में शराबबंदी का साहसिक फैसला लिया गया मगर व्यवस्था के छिद्रों से शराबबंदी रिसने लगी है। हालत यह है कि बिहार में शराबबंदी के बाद हर मिनट में तीन लीटर शराब बरामद हो रही है और हर दस मिनट में एक गिरफ्तारी हो रही है ।इन हालात को देखकर स्पष्ट है कि वैश्विक स्तर पर 2025 तक शराब की खपत में दस फीसदी की कटौती का जो लक्ष्य रखा गया था, वह पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। बिहार में शराबबंदी का एक चौंकाने वाला पहलू यह भी है कि शराबबंदी कानून के तहत अब तक बिहार में एक लाख मामले दर्ज हुए हैं।?साथ ही डेढ़ लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया है। ये आंकड़ा बताता है कि शराबबंदी के बावजूद कानून तोड़ने वालों के हौसले कितने बुलंद हैं। शराबबंदी का परिणाम यह हुआ है कि शराब के दाम सात-आठ गुना बढ़ गये हैं और मुनाफे में नये हिस्सेदार शामिल हो गये हैं। यह हमारी चिंता का विषय होना चाहिएकि देश-दुनिया में शराब से होने वाले नुकसानों के प्रति तमाम जागरूकता अभियान चलाने के बावजूद शराब की खपत कम होने का नाम क्यों नहीं ले रही है। यह समाज विज्ञानियों के लिये भी शोध का विषय होना चाहिए कि खुशी हो या गम, शराब का सेवन क्यों बढ़ता जा रहा है। कुछ लोग समाज में हताशा व तनाव को शराब की वजह बताते हैं, मगर छोटी-छोटी खुशियों में पीकर बहक जाने के कारणों को किस श्रेणी में रखा जाये। जहां आम लोगों व श्रमिक वर्ग में इस लत के बढ़ने से पूरा परिवार आर्थिक तंगी से गुजरने को मजबूर हो जाता है वहीं परिवार के चिकित्सा खर्च में भी बढ़ोतरी होती है।?हाल के कई सर्वे बताते हैं कि अधिकांश अपराधों को अंजाम देने से पहले अपराधियों ने शराब या अन्य नशों का सेवन किया।
शराब करे खराब