भले ही समुद्री चक्रवात फानी ओडिशा और निकटवर्ती राज्यों के लिये कष्टदायी व भय का प्रतीक रहा हो, मगर इन तूफानी हवाओं ने नवीन पटनायक की छवि निखार दी। इस कुदरत के कहर का मुकाबला राज्य सरकार ने जिस सूझबूझ व कुशलता से किया, उसे पूरी दुनिया ने सराहा। एक-एक जान के लिये सरकार द्वारा संवेदनशीलता दर्शाना तथा बारह लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना बड़ी बात थी। जहां 1999 नाना नदी बात में आये महाचक्रवात में दस हजार जानें गई थीं वहीं इस बार यह आंकड़ा चालीस से कम था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कम ही मौकों पर विपक्षी मुख्यमंत्रियों की तारीफ करते नजर आते हैं, लेकिन आम चुनाव के दौरान उन्होंने नवीन पटनायक सरकार की सराहना की एक व्यक्ति जो पचास साल की उम्र तक राजनीति से कोसों दूर रहा हो, और फिर जब राजनीति में आये तो राजनीति का होकर रह जाये अचरज होता हैआज वे ओडिशा में लगातार चार बार मुख्यमंत्री रहने वाले पहले राजनेता हैंहालांकि इस बार उन्हें भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है, मगर नवीन क बार म कहा जाता हाक राजनाति के बारे में कहा जाता है कि राजनीति में वे महीन कातते हैं ।यह ठीक है कि नवीन पटनायक को राजनीति विरासत म मिला ह, मगर उन्हान राजनीति का नया मुहावरा गढ़ा है। उनके पिता बीजू पटनायक का राजनीति में अपना ऊंचा कद था। बीजू पटनायक राजनेता से पहले एक स्वतंत्रता सेनानी और वायुसेना अधिकारी थे। द्विताय विश्व युद्ध के - - - - - - - - । ।- - - - - - महत्वपूर्ण अभियानों के लिये उन्होंने उड़ान भरी। बताया जाता है कि आजादी के बाद कश्मीर पर पाकिस्तानी घुपपैठियों ने हमला किया तो वे पंडित नेहरू के कहने पर 17 जवानों को लेकर श्रीनगर के हवाई अड़े पर उतरे थे। इन जवानों ने घुसपैठियों को खदेड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बीजू पटनायक कई देशों के नायक थे। जब उनका निधन हुआ तो उनके जब उनका निधन हुआ तो उनके पार्थिव शरीर पर तिरंगे के अलावा रूस व इंडोनेशिया के ध्वज लिपटे थे जीवन के शुरुआती पचास साल वे राजनीति से अलग-थलग रहे। विदेशों में उन्होंने अपने ढंग से जीवन जीया। किताबें लिखी और एक फिल्म में भी काम किया। अमेरिका में जान एफ. कनैडी की पत्नी से उनके अच्छे संपर्क रहे। इसके अलावा संगीत की दुनिया के नामी लोगों और भारत के कई बड़े पत्रकारों से उनके संबंध रहे। दून स्कूल में संजय गांधी उनके सहपाठी रहे। बाद में राजीव गांधी से भी उनके संबंध बहुत अच्छे रहे। सोनिया गांधी तक गांधी तक उनकी पहुंच दिग्गज कांग्रेसी नेताओं से अधिक रही। वर्ष 1996 में सांसद और फिर मत्री बनने के बाद उनका जो राजनीतिक यात्रा शुरू हुई, वह आज लगातार चार बार मुख्यमंत्री बनने तक जारी है। राजनीति में आने के बाद उनकी दस बात को लेकर आलोचना होती रही किरहें टिया बोलनी भी नहीं आती। वे अच्छा भाषण नहीं दे पाते। यरोपीय शैली की धारापवाह अंग्रेजी बोलने वाले नवीन पटनायक का भाषण रोसन में लिखा जाता रहा। लेकिन राजनीतिक भाषाचार से आजिज जनता ने उनके उडिया न बोलने को भी सहर्ष स्वीकारा। उन्हें उम्मीद थी कि वे राज्य के विकास को नई दिशा देंगे। उन्होंने एक ईमानदार राजनेता की ठति भी बनायी। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के दो दर्जन से अधिक मंत्रियों को कटाचार व अनचित कारणों के लिये बाहर का रास्ता दिखाया। राजनीति में आने के बाद खादी के कुर्ते-पाजामे में नजर आने वाले नवीन पटनायक बेहद सलझे व कम बोलने वाले राजनेता के रूप में जाने जाते हैं। लेकिन उनके राजनीतिक दांवों को समझना उतना ही जटिल है। समय पर पार्टी के महत्वाकांक्षी राजनेताओं, नौकरशाहों आर अपन मित्रा का उन्होंने मौका मिलते ऐसे किनारे लगाया कि सब हैरत में पड़ गये। जहां तक ओडिशा के विकास की बात है तो राज्य में कई तरह के अंतर्विरोध सामने नजर आते हैं। शिक्षा व्यवस्था में कोई आमलचल परिवर्तन तो नहीं हआ मगर प्रतियोगी परीक्षाओं में ओडिशा की भागीदारी अव्वल है। स्वास्थ्य सुविधाओं में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ मगर राज्य के शहर साफ-सुथरे हैं। राज्य का औद्योगिक विकास बहुत उल्लेखनीय नहीं है मगर गरीबों के लिये उन्होंने तमाम ऐसी योजनाएं चलाई हैं जो बहत राहतकारी हैं। सस्ता अनाज व खाना देना इन योजनाओं का हिस्सा है। कहा भी जाता है कि याजनाए लोकलुभावनी तो है मगर प्रगातशाल विकास का आधाराराला नही रखती ।यह उनकी राजनीतिक मजबूती का ही खेल था कि राज्य में कांग्रेस लगातार हाशिये में जाती गई। अब पार्टी को भाजपा की तरफ से कड़ी चुनौती मिल रही है। पिछले निकाय चुनावों में भाजपा ने बीजू जनता दल का ?आधार कम किया। उत्तरी भारत में अपना जनाधार खिसकते देख भाजपा ने इस बार ओडिशा में पूरी ताकत झोंक रखी है।
फिर नायक बनकर उभरे पटनायक